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10)जब मैं दिल्ली गया ( यादों के झरोके से )



शीर्षक = जब मैं दिल्ली गया 




एक बार फिर आप सब के समक्ष हाजिर हूँ, एक और गुज़रे पल की यादों को यादों के झरोखे से निकाल कर आप सबके साथ साँझा करने के लिए 


तो आइये चलते है , उस पल को दोबारा मुझमे जीने के लिए ये बात है उन दिनों की जब मैंने बारहवीं की परीक्षा पास की, हमारे घर का माहौल थोड़ा सख्त था, सख्त होने से मुराद ये है की हम घर से ज्यादा बाहर नही जाते थे 


उसके पीछे का कारण ये था की हमारे पापा, हमारे घर से दूर  रहते थे काम के सिलसिले में और एक हफ्ते में आते थे  जिस वजह से हम सब भाई बहनो की ज़िम्मेदारी हमारी अम्मी पर ही थी, उन्हे ही हमारी देखभाल करना थी , बाहर की बुरी संगत से बचाना था  और पढ़ाई भी कराना थी ,

उन्होंने ही हमें इतना अच्छा और थोड़ा बहुत सख्त माहौल दिया जिसके चलते उन्हे कभी भी हम भाई बहनो की कोई भी शिकायत  हमारे पापा से कहने की ज़रूरत ही नही पड़ी क्यूंकि उन्हे पता था की एक हफ्ते बाद ही तो हमारे पापा घर आते थे  और इस तरह उन्हे हमारी हफ्ते भर की शिकायते बता कर उन्हे हम पर गुस्सा आएगा और घर का माहौल ख़राब हो जाएगा


इसलिए उन्होंने ही हमें इस तरह की परवरिश दी की हमें कभी भी पिता के हाथो पिटना नही पड़ा , जिसके चलते हम सब थोड़ा बाहर के माहौल में कम घुले मिले थे, सिवाय मामू के घर रामपुर जाने के अलावा कोई भी अन्य शहर का सफऱ हमारे लिए एक नया अनुभव सा था


लेकिन जब हमने बारहवीं की परीक्षा पास की, तब तो हमें बाहर निकालना ही था, अब घर में रह कर तो कुछ नही होने वाला था 


और अब हमें दिल्ली जाना था  अपने एग्जाम की वजह से, मुझ जैसे के लिए जिसने कभी 30 किलोमीटर या उससे थोड़े बहुत आगे के दायरे से बाहर कदम नही रखा उसके लिए दिल्ली जैसे महानगर जाना तो लोहे के चने चबाने जैसा था


खेर जाना तो था ही, क्यूंकि एग्जाम था  छोड़ भी नही सकते थे , सिर्फ इस डर से की परीक्षा दिल्ली में थी 

दिल डर रहा था,क्यूंकि कोई और दोस्त भी नही जा रहा था , एक दोस्त जा भी रहा था  लेकिन वो स्टेशन पर आया ही नही, इंतज़ार करते करते ट्रैन के आने का समय हो गया था 


दिल ज़ोरो से धड़क रहा था, क्यूंकि ट्रैन के आने की घोषणा हो रही थी 

दिल ने ठान लिया था की जाना है तो जाना है, दिल्ली ही तो है  कौन सा माउंट एवेरेस्ट की चढ़ाई करनी है , जो इतना डर रहा है 

हौसला करके स्टेशन के अंदर कदम रखा ही था  की तभी सामने सीट पर एक जाना पहचाना चेहरा दिखाई पड़ा , जिसे देख चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आयी , जैसा आप सोच रहे है  वैसा नही था  वो दोस्त नही था जिसे मेरे साथ जाना था, बल्कि वो तो हमारे पड़ोस में रहने वाली एक खातून ( महिला ) थी, जिन्हे हम भली भांति जानते थे और वो हमारे घर वालों को


मैं जाकर उनके पास बैठ गया, मेरे पूछने से पहले ही उन्होंने पूछ लिया " अरे तुम! तुम कहा जा रहे हो "


मैंने डरते डरते दिल्ली कहा , दिल्ली का नाम सुनते ही उनके चेहरे पर भी एक मुस्कान सी आन पहुंची और बोली " अकेले जा रहे हो "

ये सुन मैंने हाँ कह दिया


मेरी हाँ सुन वो बोल पड़ी " शुक्र है की मुझे अकेले दिल्ली नही जाना पड़ेगा, आज बेटी साथ नही थी इसलिए डर रही थी  क्यूंकि बेटी को ही उसकी ससुराल से लेने जाना है, अच्छा हुआ तुम मिल गए  "


उनके मुँह से दिल्ली का सुन मेरे दिल ने भी राहत की सास ली, और इस तरह ट्रैन के आते ही पहले मैंने उन्हे ट्रैन में चढ़ाया और बाद में खुद चढ़ गया


जगह भी एक साथ ही मिल गयी , रास्ते भर वो अपनी बाते करती रही और मैं अपनी बाते बताता रहा , उन्हे भी अकेले जाने में डर लग रहा था और मुझे उनसे ज्यादा


आखिर कार शाम होने से पहले हम दिल्ली पहुंच गए , जैसा मैंने सोचा था वो तो उससे ज्यादा अजीब था, इतनी भीड़ मैंने पहले कही नही देखी थी , इतनी भीड़ तो किसी मेले में भी नही देखी जा सकती थी


मैं तो पागल ही हो जाता अगर हमारी वो पड़ोसन ना होती जिन्हे वहाँ के रास्तो के बारे में पता था और वो जैसे तैसे करके मुझे भी अपने साथ अपनी बेटी ले घर ले गयी  और कहा की मेरा नवासा तुम्हे छोड़ आएगा जहाँ भी तुम्हे जाना है , नही तो आज रात वही रुक जाना दरअसल मेरा एग्जाम अगले दिन सुबह नो बजे था इसलिए मुझे एक दिन पहले ही जाना पड़ा था 


थोड़ी देर बाद हम उनके घर पहुंच गए , नाश्ता पानी किया, उनके घर वालों ने मेरा शुक्रिया अदा किया उनकी माँ को सही सलामत घर तक पहुंचाने के लिए बल्कि शुक्रिया तो मुझे उनका करना चाहिए था असल में तो मैं डरा हुआ था 


शाम होने से पहले मैं उनके घर से निकल आया उनके नावासे ने मुझे मेट्रो छोड़ दिया जिसके बाद मैं पूछता पूछता उस स्कूल तक पहुंच गया जहा मेरा परीक्षा केंद्र था

अब मुझे वहाँ कही रहने की जगह का बंदोबस्त करना था, मैं कॉलेज के दरवाज़े पर खड़ा सोच ही रहा था की कॉलेज का दरवाज़ा खुला और एक बूढ़े से आदमी ने आकर कहा " क्या बात है  बेटा, कल होने वाली परीक्षा के लिए आये हो "


ये सुनते ही मैंने बिना सोचे ही हाँ कह दिया

मैं उनसे कही रहने का पूछता उससे पहले ही वो बोल पड़े  " तुम्हारी तरह एक और लड़का भी यहाँ आया था, उसे रहने के लिए जगह चाहिए थी , अगर तुम्हे भी रात यही गुज़ारनी है तो बता दो मैं और मेरी पत्नि यही इसी स्कूल में रहते है और हम दोनों ने दूर से आने वाले बच्चों के रहने का इंतेज़ाम किया है, तुम चाहो तो रह सकते हो "


अंधे को क्या चाहिए होती है दो आँखे उस समय ये मुहावरा मेरे लिए हकीकत बन कर मेरे सामने आया मैंने उनका शुक्रिया किया और उनके साथ अंदर चला गया 


गर्मी का समय था इसलिए उन्होंने ज़मीन पर ही थोड़ा बहुत इंतेज़ाम कर रखा था, जो की बहुत था  उस अनजान शहर में मेरे लिए 

सब कुछ हो गया था मैंने राहत की सास ली और रात का खाना खाने चला गया और उस लड़के का इंतज़ार करने लगा जो की वहाँ रहने आने वाला था


थोड़ी देर बाद वो भी आन पंहुचा, उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था, मेरी तरह बा तूनी ही था, हम ने खूब सारी बाते की मानो बरसों से जानते थे एक दुसरे को


आखिर कार हम वही सौ गए और सुबह वहाँ से बाहर नाश्ता करने चले गए, थोड़ी देर बाद परीक्षा शुरू हो गयी  और हम परीक्षा देकर उन चाचा का शुक्रिया अदा कर वहाँ से निकल पड़े 

I S B T आंनद बिहार से उत्तराखंड जाने वाली बस पकड़ कर हम रात के 1 बजे अपने घर आ गए , उस सफऱ ने हमें बहुत कुछ सिखाया 


ऐसी ही किसी अन्य पल को आप लोगो के साथ साँझा करने के लिए जल्द हाजिर हूँगा तब तक के लिए अलविदा

यादों के झरोके से 

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3 Comments

Muskan khan

11-Dec-2022 12:59 PM

Well done

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Pranali shrivastava

10-Dec-2022 09:03 PM

शानदार

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Gunjan Kamal

10-Dec-2022 02:24 PM

लाजवाब प्रस्तुति 👌🙏🏻

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